ISBN: 978-93-93082-93-0
Author: Dr. Bhuvaneshwar Singh Mastainiya
Pages: 188
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Description
पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता व इसका महत्व आज सभी देशों के लिए समान रूप से है। क्योंकि विश्व के सभी देश आज किसी न किसी प्रकार के पर्यावरणीय संकट से ग्रस्त है। चूँकि माध्यमिक स्तर पर छात्रों की चिन्तन, तर्क एवं निरीक्षण आदि क्षमताओं का विकास हो चुका होता है अतः इस स्तर के पाठ्यक्रम मंे भारतीय संस्कृति के पर्यावरण से सम्बन्धित तथ्यों को लेकर छात्रों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता विकसित की जा सकती है। वर्तमान समय में जबकि चारों ओर इसी बात की आवश्यकता अनुभव की जा रही है कि पर्यावरण के गिरते स्तर को कैसे सुधारा जाये, पर्यावरण संरक्षण किस प्रकार हो? तो इसका उत्तर हम अपनी भारतीय संस्कृति में खोज सकते हैं। तभी पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है तथा जागरूकता ही इस समस्या का निदान है और इसके स्त्रोत हमारी भारतीय संस्कृति में भरे पड़े हैं। इस संस्कृति के जो शाश्वत तत्व हैं, वे मानवता के तत्व हैं। शिक्षा का उद्देश्य आदर्श नागरिक निर्माण करने के साथ-साथ विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण तथा उनके आचरण को सुदृढ़ बनाने का भी है। चरित्र ही सबसे बड़ी शक्ति है। राष्ट्र का सच्चा निर्माण, सच्ची प्रगति तभी हो सकेगी जब देशवासी चरित्रवान बनेंगे। मानव के मंगल से युक्त एवं शाश्वत मूल्यों से सम्पन्न भारतीय संस्कृति की शिक्षा ही इस नैतिक जागरण के लिए, पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए सर्वाधिक सशक्त और आकर्षण माध्यम है। भारतीय संस्कृति के पुरोधा प्राचीन ऋषियों ने संस्कारों द्वारा मानव जीवन के प्रत्येक अंग को गुणों से भरने व विकसित करने का यत्न किया। इन संस्कारों के आधार पर परिवर्तित शिक्षा का दृष्टिकोण शिक्षार्थियों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता से परिचित करा देगा। प्रस्तुत पुस्तक में भावी शिक्षकों की पर्यावरणीय जागरूकता एवं पर्यावरणीय अभिवृत्ति का भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों एवं आध्यात्मिकता के सन्दर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।
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